अंग्रेजी शासन के खिलाफ भारतीयों का संघर्ष एक लंबी और चुनौतीपूर्ण यात्रा रही है। ब्रिटिश साम्राज्य ने भारत में अपने शासन की स्थापना के बाद से ही यहां के लोगों पर तरह-तरह के अत्याचार किए और उनके जीवन के हर पहलू पर नियंत्रण करने का प्रयास किया।
भारतीय समाज के विभिन्न वर्गों ने समय-समय पर अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह किए, जो अंततः 1947 में भारत की स्वतंत्रता के रूप में सफल हुए। इस अध्याय में हम Class 8 Social Science History Chapter 6 Notes में अंग्रेजी शासन के खिलाफ हुए प्रमुख संघर्षों और आंदोलनों का अध्ययन करेंगे।
बिहार बोर्ड Class 8 Social Science History Chapter 6 Notes – अंग्रेजी शासन का प्रारंभिक दौर
ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने 18वीं शताब्दी में व्यापार के बहाने भारत में प्रवेश किया। प्रारंभ में उनका उद्देश्य केवल व्यापार करना था, लेकिन धीरे-धीरे उन्होंने अपनी राजनीतिक ताकत को मजबूत किया। प्लासी की लड़ाई (1757) और बक्सर की लड़ाई (1764) के बाद बंगाल, बिहार और ओडिशा में कंपनी का प्रभुत्व स्थापित हो गया। अंग्रेजों ने भारतीय शासकों की आंतरिक कमजोरी और आपसी मतभेदों का फायदा उठाकर धीरे-धीरे पूरे भारत पर कब्जा कर लिया।
किसानों और जमींदारों का विरोध
ब्रिटिश शासन के दौरान लागू की गई ज़मींदारी प्रथा ने किसानों की स्थिति को और दयनीय बना दिया। अंग्रेजों ने लगान बढ़ा दिया और किसानों पर भारी कर लगाया। इससे किसान कर्ज में डूबते चले गए और जमींदारों का शोषण बढ़ता गया। इस अत्याचार के खिलाफ किसानों ने विद्रोह किए, जिनमें से बंगाल का संन्यासी विद्रोह (1763-1800) और 1857 का चंपारण सत्याग्रह प्रमुख रहे।
- संन्यासी विद्रोह:- 18वीं शताब्दी के अंत में बंगाल में संन्यासियों और फकीरों ने अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह किया। ये संन्यासी और फकीर धार्मिक यात्राओं के दौरान अंग्रेजों द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों और आर्थिक शोषण के खिलाफ थे। इस विद्रोह ने अंग्रेजी सत्ता को काफी चुनौती दी, हालांकि इसे पूरी तरह से दबा दिया गया।
- चंपारण सत्याग्रह:- महात्मा गांधी द्वारा 1917 में बिहार के चंपारण में चलाया गया यह सत्याग्रह अंग्रेजों के खिलाफ किसानों के शोषण के खिलाफ था। अंग्रेज नील की खेती करने वाले किसानों से जबरन नील उगवाते थे और उन्हें बेहद कम दाम देते थे। गांधीजी ने किसानों के अधिकारों के लिए आवाज उठाई और यह आंदोलन सफल हुआ। यह गांधीजी का पहला बड़ा भारतीय आंदोलन था।
- 1857 का विद्रोह:- 1857 का विद्रोह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का पहला संगठित प्रयास माना जाता है। इसे ‘सिपाही विद्रोह’ या ‘प्रथम स्वतंत्रता संग्राम’ भी कहा जाता है। इस विद्रोह का मुख्य कारण अंग्रेजों द्वारा भारतीय सैनिकों और जनता पर अत्याचार, धर्म में हस्तक्षेप, आर्थिक शोषण और सामाजिक भेदभाव था। विद्रोह मेरठ से शुरू हुआ और धीरे-धीरे दिल्ली, कानपुर, लखनऊ, झांसी और अन्य क्षेत्रों में फैल गया।
विद्रोह के प्रमुख नेता
- बहादुर शाह जफर: दिल्ली के अंतिम मुगल सम्राट, जिन्होंने इस विद्रोह का नेतृत्व किया।
- नाना साहेब: कानपुर में विद्रोह का नेतृत्व किया।
- रानी लक्ष्मीबाई: झांसी की रानी, जिन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ वीरता से लड़ाई लड़ी।
- तांत्या टोपे: नाना साहेब के सहयोगी, जो कई लड़ाइयों में शामिल रहे।
हालांकि यह विद्रोह असफल रहा, लेकिन इसने भारतीयों में स्वतंत्रता की भावना को और प्रबल किया। 1857 के विद्रोह के बाद अंग्रेजों ने अपनी नीतियों में कई बदलाव किए, लेकिन भारतीयों के प्रति उनका रवैया कठोर ही रहा।
- भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन का उदय:- 19वीं शताब्दी के अंत तक अंग्रेजों के खिलाफ विरोध बढ़ता चला गया और भारतीय समाज में जागरूकता आई। इसी दौर में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना (1885) हुई, जो बाद में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की मुख्य धारा बनी। इस संगठन ने प्रारंभ में अंग्रेजों से सुधारों की मांग की, लेकिन धीरे-धीरे पूर्ण स्वतंत्रता की दिशा में कदम बढ़ाए गए।
- बंग-भंग आंदोलन (1905):- लॉर्ड कर्जन ने 1905 में बंगाल का विभाजन कर दिया, जिससे पूरे भारत में आक्रोश फैल गया। बंग-भंग के खिलाफ भारतीयों ने व्यापक स्तर पर आंदोलन किया, जिसका नेतृत्व बाल गंगाधर तिलक, बिपिन चंद्र पाल और लाला लाजपत राय जैसे नेताओं ने किया। इस आंदोलन ने स्वदेशी आंदोलन को भी जन्म दिया, जिसमें भारतीयों ने विदेशी वस्त्रों और सामानों का बहिष्कार किया और स्वदेशी वस्त्रों का उपयोग शुरू किया।
- गांधी युग और असहयोग आंदोलन:- महात्मा गांधी के नेतृत्व में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम ने एक नई दिशा प्राप्त की। गांधीजी ने अहिंसा और सत्याग्रह के सिद्धांतों के आधार पर आंदोलनों का संचालन किया। उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ असहयोग आंदोलन (1920) शुरू किया, जिसमें जनता से ब्रिटिश शासन का बहिष्कार करने और उनके संस्थानों से दूरी बनाने की अपील की गई।
- असहयोग आंदोलन:- असहयोग आंदोलन का उद्देश्य ब्रिटिश शासन को कमजोर करना और भारतीयों को आत्मनिर्भर बनाना था। इस आंदोलन के दौरान भारतीयों ने सरकारी नौकरियों से इस्तीफा दिया, स्कूलों और कॉलेजों से दूरी बनाई, और विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार किया। हालांकि चौरी-चौरा कांड के बाद गांधीजी ने यह आंदोलन वापस ले लिया, लेकिन इस आंदोलन ने भारतीयों में आत्मनिर्भरता और स्वाभिमान की भावना जागृत की।
- सविनय अवज्ञा आंदोलन और दांडी मार्च:- 1930 में महात्मा गांधी ने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ सविनय अवज्ञा आंदोलन की शुरुआत की। इस आंदोलन का मुख्य उद्देश्य नमक कानून का उल्लंघन कर अंग्रेजों के आर्थिक शोषण का विरोध करना था। गांधीजी ने 12 मार्च 1930 को साबरमती आश्रम से दांडी तक 240 मील की यात्रा की और 6 अप्रैल को समुद्र किनारे पहुंचकर नमक बनाया, जो अंग्रेजी सरकार के कानून का उल्लंघन था।
- सविनय अवज्ञा आंदोलन के परिणाम:- इस आंदोलन ने ब्रिटिश शासन को हिला कर रख दिया और भारतीय जनता में एकजुटता पैदा की। इस आंदोलन के दौरान लाखों भारतीयों ने करों का भुगतान करने से इनकार कर दिया, विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार किया और सरकारी संस्थानों से दूरी बनाई। इस आंदोलन ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को और मजबूती प्रदान की।
- भारत छोड़ो आंदोलन (1942):- 1942 में महात्मा गांधी ने ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ की घोषणा की। यह आंदोलन द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान शुरू हुआ, जब ब्रिटिश सरकार ने भारतीयों से बिना उनकी सहमति के युद्ध में भागीदारी की मांग की। गांधीजी ने स्पष्ट रूप से कहा, “अंग्रेजों भारत छोड़ो” और भारतीय जनता से स्वतंत्रता के लिए अंतिम संघर्ष करने का आह्वान किया।
आंदोलन का प्रभाव:- इस आंदोलन में लाखों भारतीयों ने भाग लिया और अंग्रेजी सत्ता के खिलाफ जोरदार संघर्ष किया। हालांकि इस आंदोलन को ब्रिटिश सरकार ने बुरी तरह दबा दिया, लेकिन इसने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की अंतिम लड़ाई का आधार तैयार किया।
निष्कर्ष
अंग्रेजी शासन के खिलाफ संघर्ष भारतीय इतिहास का एक महत्वपूर्ण अध्याय है, जिसने हमें स्वतंत्रता दिलाई। यह संघर्ष केवल युद्धों और आंदोलनों तक सीमित नहीं था, बल्कि इसमें भारतीय समाज के सभी वर्गों की सक्रिय भागीदारी थी। गांधीजी, सुभाष चंद्र बोस, भगत सिंह, और अन्य नेताओं के नेतृत्व में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम ने ब्रिटिश साम्राज्य को चुनौती दी और 15 अगस्त 1947 को भारत को स्वतंत्रता मिली।
यह संघर्ष हमें याद दिलाता है कि स्वतंत्रता अनमोल है और इसके लिए हमें हमेशा संघर्ष करने और अपने अधिकारों की रक्षा करने के लिए तैयार रहना चाहिए।
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आध्याय | अध्याय का नाम |
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1. | संसाधन |
1A. | भूमि, मृदा एवं जल संसाधन |
1B. | वन एवं वन्य प्राणी संसाधन |
1C. | खनिज संसाधन |
1D. | ऊर्जा संसाधन |
2. | भारतीय कृषि |
3 | उद्योग |
3A | लौह-इस्पात उद्योग |
3B | वस्त्र उद्योग |
3C. | सूचना प्रौद्योगिकी उद्योग |
4. | परिवहन |
5. | मानव संसाधन |
6. | एशिया (no Available notes) |
7 | भौगोलिक आँकड़ों का प्रस्तुतिकरण (no Available notes) |
अतीत से वर्तमान भाग 3 –कक्ष 8 सामाजिक विज्ञान – |
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सामाजिक आर्थिक एवं राजनीतिक जीवन भाग 3 |
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अध्याय | अध्याय का नाम |
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1. | भारतीय संविधान |
2. | धर्मनिरपेक्षता और मौलिक अधिकार |
3. | संसदीय सरकार (लोग व उनके प्रतिनिधि) |
4. | कानून की समझ |
5. | न्यायपालिका |
6. | न्यायिक प्रक्रिया |
7. | सहकारिता |
8. | खाद्य सुरक्षा |