शिल्प एवं उद्योग – BSEB class 8 social science history chapter 5 notes

भारत का इतिहास शिल्प और उद्योगों की समृद्ध परंपरा से भरा हुआ है। प्राचीन काल से ही हमारे देश में विभिन्न प्रकार के शिल्प और उद्योग विकसित हुए हैं, जिन्होंने न केवल आर्थिक बल्कि सांस्कृतिक विकास में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

BSEB class 8 social science history chapter 5 notes

इस लेख में हम BSEB class 8 social science history chapter 5 notes शिल्प एवं उद्योग” के सभी महत्वपूर्ण पहलुओं पर विस्तृत चर्चा करेंगे। यह नोट्स छात्रों को इस विषय को गहराई से समझने में मदद करेगा और परीक्षा की तैयारी के लिए उपयोगी होगा।

BSEB class 8 social science history chapter 5 notes in hindi – प्राचीन भारत में शिल्प और उद्योग

सिंधु घाटी सभ्यता

  • व्यापक शिल्पकला: सिंधु घाटी सभ्यता (2600-1900 ईसा पूर्व) में शिल्पकला का उच्च विकास देखा गया। हड़प्पा और मोहनजोदड़ो में खुदाई के दौरान मिले अवशेष इस बात के प्रमाण हैं कि लोग मिट्टी के बर्तन, धातु की वस्तुएं, मनके और कपड़े बनाने में निपुण थे।
  • धातु उद्योग: तांबा, कांसा और सोने की वस्तुओं का निर्माण आम था। ये वस्तुएं न केवल दैनिक उपयोग में आती थीं बल्कि व्यापार के माध्यम से दूर-दूर तक भेजी जाती थीं।
  • मुद्रण कला: इस सभ्यता में मुहरें बनाने की कला भी विकसित थी, जिनका उपयोग व्यापार और प्रशासन में होता था।

वैदिक काल

  • कपड़ा बुनाई: वैदिक काल में कपड़ा बुनाई का विकास हुआ। लोग सूती और ऊनी कपड़े बनाते थे, जो घरेलू और व्यापारिक उपयोग में आते थे।
  • लकड़ी का काम: लकड़ी से विभिन्न प्रकार की वस्तुएं जैसे फर्नीचर, रथ और उपकरण बनाए जाते थे।
  • धातुकर्म: लोहे का उपयोग बढ़ा, जिससे कृषि उपकरण और हथियार बनाए जाने लगे।
    मध्यकालीन भारत में शिल्प और उद्योग

दिल्ली सल्तनत और मुगल काल

  • टेक्सटाइल उद्योग: इस अवधि में भारत का टेक्सटाइल उद्योग विश्व प्रसिद्ध हुआ। मुशलीन, चंदेरी और बनारसी साड़ी जैसे उच्च गुणवत्ता वाले कपड़े बनते थे।
  • जड़ाऊ और ज़री कार्य: आभूषण निर्माण और कपड़ों पर ज़री कार्य कला का उत्कर्ष देखा गया। यह शिल्पकला मुगल बादशाहों के संरक्षण में और विकसित हुई।
  • चित्रकला और मूर्तिकला: मुगल काल में चित्रकला और मूर्तिकला का भी विकास हुआ। विभिन्न स्कूलों जैसे कि राजस्थानी और पहाड़ी चित्रकला ने अपनी पहचान बनाई।
  • धातुकर्म और हथियार निर्माण: उच्च गुणवत्ता वाले हथियार और धातु की वस्तुएं बनाई जाती थीं, जिनकी मांग देश और विदेश में थी।

दक्षिण भारत के शिल्प

  • चोल काल का कांस्य कार्य: चोल राजवंश के समय कांस्य मूर्तियों का निर्माण कला अपने चरम पर थी। नटराज की मूर्तियाँ इस कला का उत्कृष्ट उदाहरण हैं।
  • कांचीपुरम सिल्क: दक्षिण भारत में कांचीपुरम सिल्क साड़ियों का उत्पादन प्रचलित था, जो आज भी अपनी गुणवत्ता और सुंदरता के लिए प्रसिद्ध हैं।
  • पत्थर का काम: मंदिरों और महलों में पत्थर पर की गई नक्काशी कला दक्षिण भारत की विशेषता थी। उदाहरण के लिए, मदुरै का मीनाक्षी मंदिर।

औपनिवेशिक भारत में शिल्प और उद्योग

ब्रिटिश शासन का प्रभाव

  • शिल्प उद्योगों का पतन: ब्रिटिश शासन के दौरान भारत के पारंपरिक शिल्प उद्योगों को भारी नुकसान पहुंचा। ब्रिटिश नीतियों के कारण स्थानीय उद्योगों का पतन हुआ और लोग बेरोजगार हो गए।
  • कच्चे माल का निर्यात: ब्रिटिशों ने भारत से कच्चा माल जैसे कपास और जूट का निर्यात करके अपने देश में उद्योगों को बढ़ावा दिया, जिससे भारतीय उद्योगों को नुकसान हुआ।
  • नए उद्योगों का उदय: हालांकि, इस दौरान कुछ आधुनिक उद्योग भी स्थापित हुए जैसे कि कपड़ा मिल, इस्पात कारखाने और रेल मार्ग का विकास।

स्वदेशी आंदोलन

  • स्वदेशी वस्तुओं का प्रोत्साहन: ब्रिटिश नीतियों के विरोध में स्वदेशी आंदोलन शुरू हुआ, जिसके तहत भारतीय वस्तुओं के उपयोग को बढ़ावा दिया गया।
  • खादी और ग्रामोद्योग: महात्मा गांधी ने खादी और ग्रामोद्योग को प्रोत्साहित किया, जिससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूती मिली।
  • राष्ट्रीय चेतना का विकास: शिल्प और उद्योगों के पुनरुद्धार से राष्ट्रीयता की भावना मजबूत हुई और आजादी के आंदोलन को बल मिला।

स्वतंत्र भारत में शिल्प और उद्योग

योजना और नीतियाँ

  • पांच वर्षीय योजनाएँ: स्वतंत्रता के बाद सरकार ने पांच वर्षीय योजनाओं के माध्यम से उद्योगों के विकास पर जोर दिया। बड़े पैमाने पर इस्पात, कोयला और बिजली के उद्योग स्थापित किए गए।
  • सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योग (MSME): सरकार ने सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए नीतियाँ बनाई, जिससे रोजगार के अवसर बढ़े और आर्थिक विकास हुआ।
  • हथकरघा और हस्तशिल्प: पारंपरिक शिल्पों को संरक्षित और प्रोत्साहित करने के लिए विभिन्न योजनाएँ शुरू की गईं, जैसे कि हथकरघा विकास कार्यक्रम।

आधुनिक उद्योगों का विकास

  • आईटी उद्योग: 20वीं सदी के अंत और 21वीं सदी की शुरुआत में भारत में सूचना प्रौद्योगिकी उद्योग का तेजी से विकास हुआ। बेंगलुरु, हैदराबाद और पुणे जैसे शहर आईटी हब बन गए।
  • ऑटोमोबाइल उद्योग: भारत में ऑटोमोबाइल उद्योग का भी महत्वपूर्ण विकास हुआ है। देश में कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय कंपनियाँ वाहन निर्माण कर रही हैं।
  • फार्मास्युटिकल उद्योग: भारत दुनिया में दवाओं का एक प्रमुख उत्पादक और निर्यातक बन चुका है। भारतीय दवाएँ गुणवत्ता और किफायती होने के कारण विश्व स्तर पर प्रसिद्ध हैं।

शिल्प और उद्योगों की चुनौतियाँ

  • प्रतिस्पर्धा: वैश्विक बाजार में प्रतिस्पर्धा के कारण भारतीय उद्योगों को गुणवत्ता और लागत के मामले में चुनौती का सामना करना पड़ता है।
  • प्रौद्योगिकी का अभाव: कई शिल्पकारों के पास आधुनिक तकनीक की कमी है, जिससे वे अपने उत्पादों को बेहतर बनाने में असमर्थ हैं।
  • वित्तीय संसाधनों की कमी: छोटे और मध्यम उद्योगों को वित्तीय संसाधनों की कमी का सामना करना पड़ता है, जिससे उनका विकास प्रभावित होता है।
  • पर्यावरणीय चिंताएँ: कुछ उद्योगों के कारण पर्यावरण पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है, जिसके समाधान के लिए सतत विकास मॉडल की आवश्यकता है।

शिल्प और उद्योगों के संरक्षण के उपाय

  • प्रशिक्षण और शिक्षा: शिल्पकारों और उद्योग कर्मियों को आधुनिक तकनीकों और प्रथाओं का प्रशिक्षण प्रदान करना आवश्यक है।
  • वित्तीय सहायता: सरकार और वित्तीय संस्थानों को छोटे और मध्यम उद्योगों को आर्थिक सहायता प्रदान करनी चाहिए।
  • बाजार का विस्तार: राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में भारतीय शिल्प और उद्योग उत्पादों की पहुंच बढ़ाने के लिए विपणन

रणनीतियाँ विकसित की जानी चाहिए।

  • पर्यावरणीय स्थिरता: उद्योगों को पर्यावरण-मित्र तरीकों को अपनाना चाहिए ताकि पर्यावरण पर नकारात्मक प्रभाव को कम किया जा सके।

निष्कर्ष

शिल्प और उद्योग भारत की सांस्कृतिक और आर्थिक विरासत का अभिन्न हिस्सा हैं। प्राचीन काल से लेकर आधुनिक समय तक, इनका विकास देश की प्रगति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता रहा है। वर्तमान समय में, हमें अपने पारंपरिक शिल्पों को संरक्षित करते हुए आधुनिक उद्योगों को भी बढ़ावा देना चाहिए। शिक्षा, प्रशिक्षण, और सरकार की सहायक नीतियों के माध्यम से हम अपने शिल्प और उद्योगों को नई ऊंचाइयों तक पहुंचा सकते हैं। यह न केवल आर्थिक विकास को प्रोत्साहित करेगा बल्कि हमारी सांस्कृतिक पहचान को भी मजबूत करेगा।

उम्मीद है कि ये नोट्स आपको “ BSEB class 8 social science history chapter 5 notes “ के विषय को समझने में मदद करेंगे और आपकी परीक्षा की तैयारी को और बेहतर बनाएंगे।

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आध्याय अध्याय का नाम
1.संसाधन
1A.भूमि, मृदा एवं जल संसाधन
1B.वन एवं वन्य प्राणी संसाधन
1C.खनिज संसाधन
1D.ऊर्जा संसाधन
2.भारतीय कृषि
3उद्योग
3Aलौह-इस्पात उद्योग
3Bवस्त्र उद्योग
3C.सूचना प्रौद्योगिकी उद्योग
4.परिवहन
5.मानव संसाधन
6.एशिया (no Available notes)
7भौगोलिक आँकड़ों का प्रस्तुतिकरण (no Available notes)
अतीत से वर्तमान भाग 3कक्ष 8 सामाजिक विज्ञान
आध्याय अध्याय का नाम
1.कब, कहाँ और कैसे
2.भारत में अंग्रेजी राज्य की स्थापना
3.ग्रामीण ज़ीवन और समाज
4.उपनिवेशवाद एवं जनजातीय समाज
5.शिल्प एवं उद्योग
6.अंग्रेजी शासन के खिलाफ संघर्ष (1857 का विद्रोह)
7.ब्रिटिश शासन एवं शिक्षा
8.जातीय व्यवस्था की चुनौतियाँ
9.महिलाओं की स्थिति एवं सुधार
10.अंग्रेजी शासन एवं शहरी बदलाव
11.कला क्षेत्र में परिवर्तन
12.राष्ट्रीय आन्दोलन (1885-1947)
13.स्वतंत्रता के बाद विभाजित भारत का जन्म
14.हमारे इतिहासकार कालीकिंकर दत्त (1905-1982)
सामाजिक आर्थिक एवं राजनीतिक जीवन भाग 3
अध्यायअध्याय का नाम
1.भारतीय संविधान
2.धर्मनिरपेक्षता और मौलिक अधिकार
3.संसदीय सरकार (लोग व उनके प्रतिनिधि)
4.कानून की समझ
5.न्यायपालिका
6.न्यायिक प्रक्रिया
7.सहकारिता
8.खाद्य सुरक्षा

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