सहकारिता – Bihar board class 8th SST civics chapter 7 Notes in hindi

सहकारिता (Cooperation) एक ऐसा संगठनात्मक ढांचा है जिसमें लोग मिलकर एक सामूहिक लक्ष्य की प्राप्ति के लिए कार्य करते हैं। सहकारिता का मुख्य उद्देश्य लोगों की सामूहिक आवश्यकताओं और इच्छाओं को पूरा करना होता है। यह समाज में एकता, सहयोग और समानता की भावना को बढ़ावा देती है।

Bihar board class 8th SST civics chapter 7 Notes in hindi

Bihar board class 8th SST civics chapter 7 Notes in hindi में सहकारिता के महत्व, प्रकार, और उसकी संरचना के बारे में जानकारी दी गई है। इस लेख में, हम इस अध्याय के महत्वपूर्ण बिंदुओं को विस्तार से समझेंगे।

सहकारिता की परिभाषा : Bihar Board Class 8 Samajik Arthik Rajnitik Jeevan Chapter 1 Notes

सहकारिता एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें लोग स्वेच्छा से एक साथ आते हैं और अपने आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए एक सामूहिक प्रयास करते हैं। सहकारिता की नींव इस विचार पर आधारित है कि जब लोग मिलकर काम करते हैं, तो वे एक साथ अधिक से अधिक लाभ प्राप्त कर सकते हैं।

सहकारिता का महत्व:- सहकारिता का महत्व समाज के सभी वर्गों के लिए अत्यधिक है। यह ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में आर्थिक और सामाजिक विकास को प्रोत्साहित करती है। सहकारिता निम्नलिखित तरीकों से समाज को लाभान्वित करती है:

  • सामाजिक एकता: सहकारिता सामाजिक एकता को बढ़ावा देती है क्योंकि यह लोगों को एक साथ मिलकर काम करने की प्रेरणा देती है। इससे समुदाय में भाईचारा और सहयोग की भावना विकसित होती है।
  • आर्थिक सुरक्षा: सहकारी संस्थाओं के माध्यम से लोग अपनी आर्थिक आवश्यकताओं को पूरा कर सकते हैं। उदाहरण के लिए, सहकारी बैंक लोगों को कम ब्याज दरों पर ऋण प्रदान करते हैं, जिससे उन्हें आर्थिक सुरक्षा मिलती है।
  • गरीबी उन्मूलन: सहकारी संस्थाएँ गरीब और वंचित वर्गों के लोगों को रोजगार के अवसर प्रदान करती हैं, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार होता है और गरीबी का उन्मूलन होता है।
  • महिला सशक्तिकरण: सहकारिता महिला सशक्तिकरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। सहकारी संस्थाओं में महिलाओं की भागीदारी उन्हें आत्मनिर्भर बनने और समाज में अपनी स्थिति मजबूत करने में मदद करती है।

सहकारिता के प्रकार:- सहकारिता के विभिन्न प्रकार होते हैं, जो उनके उद्देश्यों और कार्यक्षेत्र के आधार पर विभाजित किए जा सकते हैं:

  • उपभोक्ता सहकारिता: यह सहकारिता उन लोगों के लिए होती है जो सामूहिक रूप से अपनी उपभोक्ता आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए एकत्रित होते हैं। उदाहरण के लिए, उपभोक्ता सहकारी समितियाँ सामूहिक रूप से सामान खरीदकर अपने सदस्यों को कम कीमत पर बेचती हैं।
  • उत्पादक सहकारिता: इस प्रकार की सहकारिता में उत्पादक मिलकर काम करते हैं और अपने उत्पादों को बाजार में बेचते हैं। इससे उन्हें अधिक लाभ मिलता है और वे अपनी उत्पादन लागत को भी कम कर सकते हैं।
  • कृषि सहकारिता: यह सहकारिता किसानों के लिए होती है, जो सामूहिक रूप से कृषि कार्यों को करते हैं। इससे वे बेहतर तकनीकों का उपयोग कर सकते हैं और अपनी फसलों का उत्पादन बढ़ा सकते हैं।
  • ऋण सहकारिता: इस प्रकार की सहकारिता में लोग सामूहिक रूप से वित्तीय सहायता प्राप्त करते हैं। सहकारी बैंक और ऋण समितियाँ इस प्रकार की सहकारिता के उदाहरण हैं, जो लोगों को कम ब्याज दर पर ऋण प्रदान करती हैं।

सहकारिता की संरचना:- सहकारिता की संरचना में विभिन्न स्तर होते हैं, जो इसे सुचारू रूप से संचालित करने में मदद करते हैं। सहकारी संगठन आमतौर पर निम्नलिखित स्तरों पर काम करते हैं:

  • स्थानीय स्तर: यह सबसे निचला स्तर होता है, जहाँ सहकारी समितियाँ गाँव या कस्बे के स्तर पर कार्य करती हैं। इन समितियों में सदस्य मिलकर अपने उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए काम करते हैं।
  • जिला स्तर: जिला स्तर पर सहकारी समितियाँ अपने क्षेत्र के सहकारी संगठनों की देखरेख करती हैं और उन्हें आवश्यक दिशा-निर्देश देती हैं।
  • राज्य स्तर: राज्य स्तर पर सहकारी संगठन राज्य के भीतर सहकारी आंदोलनों को संगठित और प्रोत्साहित करते हैं। ये संगठन राज्य सरकार के साथ मिलकर सहकारी योजनाओं को लागू करने में मदद करते हैं।
  • राष्ट्रीय स्तर: राष्ट्रीय स्तर पर सहकारी संगठन पूरे देश में सहकारी आंदोलनों का नेतृत्व करते हैं। ये संगठन सहकारिता के क्षेत्र में नीतियाँ बनाते हैं और उन्हें लागू करने के लिए विभिन्न सहकारी संस्थाओं को सहायता प्रदान करते हैं।

सहकारिता के सिद्धांत:- सहकारिता के कुछ प्रमुख सिद्धांत होते हैं जो इसके संचालन और सफलता के लिए आवश्यक होते हैं:

  • स्वैच्छिक और खुली सदस्यता: सहकारी संगठन में सदस्यता स्वैच्छिक होती है और इसमें किसी भी प्रकार के भेदभाव की अनुमति नहीं होती। कोई भी व्यक्ति जो संगठन के उद्देश्यों से सहमत होता है, वह सदस्य बन सकता है।
  • लोकतांत्रिक नियंत्रण: सहकारी संगठन का प्रबंधन लोकतांत्रिक तरीकों से किया जाता है, जिसमें सभी सदस्यों को निर्णय लेने की प्रक्रिया में भाग लेने का अधिकार होता है। प्रत्येक सदस्य के पास एक वोट का अधिकार होता है।
  • सदस्यों की आर्थिक भागीदारी: सहकारी संगठन में सदस्यों की आर्थिक भागीदारी आवश्यक होती है। संगठन का लाभ सदस्यों के बीच समान रूप से वितरित किया जाता है, जिससे सभी को समान लाभ प्राप्त होता है।
  • स्वायत्तता और स्वतंत्रता: सहकारी संगठन स्वतंत्र होते हैं और अपनी नीतियों और कार्यक्रमों का निर्धारण स्वयं करते हैं। इन्हें बाहरी हस्तक्षेप से बचाने के लिए स्वायत्तता का सिद्धांत महत्वपूर्ण होता है।
  • शिक्षा और प्रशिक्षण: सहकारी संगठन अपने सदस्यों को शिक्षा और प्रशिक्षण प्रदान करते हैं, ताकि वे संगठन के कार्यों को समझ सकें और उसमें सक्रिय रूप से भाग ले सकें।
  • सहकारिता के बीच सहयोग: सहकारी संगठन एक दूसरे के साथ सहयोग करते हैं, ताकि वे अपने लक्ष्यों को प्राप्त कर सकें और अपने सदस्यों के लिए बेहतर सेवाएँ प्रदान कर सकें।
  • समाज के प्रति उत्तरदायित्व: सहकारी संगठन समाज के प्रति भी उत्तरदायित्व महसूस करते हैं। वे अपने कार्यों के माध्यम से समाज के विकास में योगदान करते हैं और समाज में सकारात्मक बदलाव लाने का प्रयास करते हैं।

सहकारिता के लाभ और चुनौतियाँ:- सहकारिता के कई लाभ होते हैं, जैसे कि सामूहिक प्रयासों से लक्ष्यों की प्राप्ति, सामाजिक और आर्थिक सुरक्षा, और समाज में समानता की भावना का विकास। हालांकि, सहकारिता को कई चुनौतियों का भी सामना करना पड़ता है, जैसे कि संगठन की पारदर्शिता की कमी, प्रबंधन में कठिनाइयाँ, और बाहरी हस्तक्षेप।

इन चुनौतियों का समाधान करने के लिए सहकारी संगठनों को अपने प्रबंधन को सुदृढ़ करना होगा और सदस्यों के बीच शिक्षा और जागरूकता फैलानी होगी। साथ ही, सरकार को भी सहकारिता के क्षेत्र में नीतियाँ बनानी चाहिए और उन्हें सफलतापूर्वक लागू करने के लिए सहकारी संगठनों को आवश्यक सहायता प्रदान करनी चाहिए।

निष्कर्ष

सहकारिता भारतीय समाज के विकास में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यह लोगों को एक साथ लाने, उन्हें सशक्त बनाने, और समाज में समानता और न्याय की भावना को बढ़ावा देने का एक महत्वपूर्ण माध्यम है। बिहार बोर्ड कक्षा 8वीं के सामाजिक विज्ञान के नागरिकशास्त्र के इस अध्याय में सहकारिता की संरचना, महत्व, और सिद्धांतों पर विस्तार से चर्चा की गई है।

यह अध्याय विद्यार्थियों को सहकारिता के महत्व और उसके समाज में योगदान को समझने में मदद करेगा, जिससे वे भविष्य में एक सशक्त और सहयोगी समाज के निर्माण में योगदान कर सकेंगे।

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आध्याय अध्याय का नाम
1.संसाधन
1A.भूमि, मृदा एवं जल संसाधन
1B.वन एवं वन्य प्राणी संसाधन
1C.खनिज संसाधन
1D.ऊर्जा संसाधन
2.भारतीय कृषि
3उद्योग
3Aलौह-इस्पात उद्योग
3Bवस्त्र उद्योग
3C.सूचना प्रौद्योगिकी उद्योग
4.परिवहन
5.मानव संसाधन
6.एशिया (no Available notes)
7भौगोलिक आँकड़ों का प्रस्तुतिकरण (no Available notes)
अतीत से वर्तमान भाग 3कक्ष 8 सामाजिक विज्ञान
आध्याय अध्याय का नाम
1.कब, कहाँ और कैसे
2.भारत में अंग्रेजी राज्य की स्थापना
3.ग्रामीण ज़ीवन और समाज
4.उपनिवेशवाद एवं जनजातीय समाज
5.शिल्प एवं उद्योग
6.अंग्रेजी शासन के खिलाफ संघर्ष (1857 का विद्रोह)
7.ब्रिटिश शासन एवं शिक्षा
8.जातीय व्यवस्था की चुनौतियाँ
9.महिलाओं की स्थिति एवं सुधार
10.अंग्रेजी शासन एवं शहरी बदलाव
11.कला क्षेत्र में परिवर्तन
12.राष्ट्रीय आन्दोलन (1885-1947)
13.स्वतंत्रता के बाद विभाजित भारत का जन्म
14.हमारे इतिहासकार कालीकिंकर दत्त (1905-1982)
सामाजिक आर्थिक एवं राजनीतिक जीवन भाग 3
अध्यायअध्याय का नाम
1.भारतीय संविधान
2.धर्मनिरपेक्षता और मौलिक अधिकार
3.संसदीय सरकार (लोग व उनके प्रतिनिधि)
4.कानून की समझ
5.न्यायपालिका
6.न्यायिक प्रक्रिया
7.सहकारिता
8.खाद्य सुरक्षा

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