कक्षा 8 के इतिहास के Bihar Board Class 8 History chapter 2 Notes “भारत में अंग्रेजी राज्य की स्थापना” में हमें यह समझने का अवसर मिलता है कि किस प्रकार अंग्रेजी ईस्ट इंडिया कंपनी ने धीरे-धीरे भारत में अपना वर्चस्व स्थापित किया और एक व्यापारी कंपनी से शासक बन गई। इस लेख में, हम अंग्रेजी शासन की स्थापना की प्रमुख घटनाओं और नीतियों का विश्लेषण करेंगे, जो अंग्रेजों की सत्ता की नींव बनीं।
अंग्रेजी ईस्ट इंडिया कंपनी का आगमन- Bihar Board Class 8 History chapter 2 Notes
अंग्रेजी ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना 1600 ई. में हुई थी। यह कंपनी व्यापार के उद्देश्य से भारत आई थी, लेकिन समय के साथ इसने भारतीय राजनीति में हस्तक्षेप करना शुरू कर दिया। 17वीं शताब्दी के अंत में, मुगल साम्राज्य का पतन हो रहा था और भारत में राजनीतिक अस्थिरता का माहौल था। इस स्थिति का फायदा उठाकर अंग्रेजों ने अपनी व्यापारिक गतिविधियों का विस्तार किया और भारतीय शासकों के साथ संधियाँ करने लगे।
- प्लासी की लड़ाई (1757):- भारत में अंग्रेजी शासन की स्थापना की दिशा में पहला बड़ा कदम प्लासी की लड़ाई थी, जो 23 जून 1757 को बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला और अंग्रेजी ईस्ट इंडिया कंपनी के बीच लड़ी गई थी। इस लड़ाई में नवाब की हार हुई, जिसका मुख्य कारण उनके सेनापति मीर जाफर की गद्दारी थी। अंग्रेजों ने इस लड़ाई को जीतने के बाद बंगाल पर अपना नियंत्रण स्थापित कर लिया। यह लड़ाई भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ थी, क्योंकि इसके बाद अंग्रेजों ने बंगाल के माध्यम से पूरे भारत में अपनी सत्ता का विस्तार करना शुरू किया।
- बक्सर की लड़ाई (1764)L- बक्सर की लड़ाई 22 अक्टूबर 1764 को बक्सर के मैदान में लड़ी गई थी। यह लड़ाई अंग्रेजों और तीन भारतीय शासकों – बंगाल के मीर कासिम, अवध के नवाब शुजाउद्दौला, और मुगल सम्राट शाह आलम द्वितीय – के बीच हुई थी। इस लड़ाई में भी अंग्रेजों की विजय हुई और इसके परिणामस्वरूप उन्हें बंगाल, बिहार और उड़ीसा के दीवानी अधिकार प्राप्त हुए। यह लड़ाई भारत में अंग्रेजों की सत्ता को मजबूत करने के लिए महत्वपूर्ण थी, क्योंकि इसके बाद उन्होंने भारतीय रियासतों पर धीरे-धीरे नियंत्रण करना शुरू कर दिया।
- कंपनी शासन का विस्तार:- प्लासी और बक्सर की लड़ाइयों के बाद, अंग्रेजी ईस्ट इंडिया कंपनी ने अपने शासन का विस्तार करने के लिए विभिन्न नीतियाँ अपनाईं। उन्होंने भारतीय शासकों के साथ संधियाँ कीं और उनके आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करना शुरू किया। अंग्रेजों ने ‘डिवाइड एंड रूल’ (फूट डालो और शासन करो) की नीति अपनाई, जिससे भारतीय रियासतों में आपसी मतभेद और असहमति बढ़ गई और अंग्रेजों को अपने पक्ष में करने में मदद मिली।
- संधियाँ और संधि की शर्तें:- अंग्रेजों ने भारतीय रियासतों के साथ कई संधियाँ कीं, जिनमें से कई असमान और रियासतों के लिए हानिकारक थीं। सबसे प्रमुख थी सुब्सिडियरी एलायंस (Subsidiary Alliance) की नीति, जिसे लॉर्ड वेलेजली ने लागू किया। इस नीति के तहत, भारतीय शासकों को अंग्रेजी सेना का खर्च उठाना पड़ता था और उनके अपने सैनिकों को हटाना पड़ता था। इसके अलावा, अंग्रेजों ने डोctrine of Lapse (हड़प नीति) को भी लागू किया, जिसके तहत यदि किसी रियासत का शासक बिना उत्तराधिकारी के मर जाता था, तो वह राज्य अंग्रेजों के अधीन आ जाता था।
- डिवाइड एंड रूल की नीति:- अंग्रेजों ने भारत में अपनी सत्ता को स्थायी बनाने के लिए ‘डिवाइड एंड रूल’ की नीति अपनाई। उन्होंने भारतीय शासकों, सामंतों और जनजातियों के बीच आपसी विभाजन को प्रोत्साहित किया। इससे भारतीय समाज में एकता की कमी हुई और अंग्रेजों को आसानी से अपनी शक्ति का विस्तार करने का मौका मिला। इस नीति ने अंग्रेजों को भारतीय समाज को नियंत्रित करने में सहायता की और उन्होंने इस रणनीति का इस्तेमाल पूरे भारत में अपने शासन को मजबूत करने के लिए किया।
नवीन प्रशासनिक संरचना:- अंग्रेजों ने भारत में प्रशासनिक सुधार किए और अपनी सत्ता को स्थायी बनाने के लिए एक केंद्रीकृत प्रशासनिक प्रणाली स्थापित की। उन्होंने भारतीय शासकों को उनके पदों पर बने रहने की अनुमति दी, लेकिन उन्हें अंग्रेजों के अधीन कर दिया। इसके अलावा, अंग्रेजों ने न्यायिक व्यवस्था, राजस्व प्रणाली, और पुलिस व्यवस्था में भी सुधार किए, जिससे भारतीय समाज पर उनका नियंत्रण और भी मजबूत हो गया।
आर्थिक नीतियाँ और भारतीय अर्थव्यवस्था पर प्रभाव:- अंग्रेजों की आर्थिक नीतियाँ भी भारतीय समाज पर गहरा प्रभाव डालने वाली थीं। उन्होंने भारत से कच्चा माल सस्ते में खरीदकर इंग्लैंड भेजा और वहाँ से तैयार वस्त्रों को महंगे दामों में भारत में बेचा। इससे भारतीय शिल्प और उद्योग बुरी तरह प्रभावित हुए। अंग्रेजों की कर और भूमि नीतियों ने भारतीय किसानों की स्थिति और खराब कर दी। इन नीतियों ने भारत को एक उपनिवेशिक अर्थव्यवस्था में परिवर्तित कर दिया, जहाँ उत्पादन का उद्देश्य केवल अंग्रेजी व्यापार को बढ़ावा देना था।
सारांश
भारत में अंग्रेजी राज्य की स्थापना एक धीमी और सुनियोजित प्रक्रिया थी, जिसमें अंग्रेजी ईस्ट इंडिया कंपनी ने व्यापार के माध्यम से भारत में प्रवेश किया और धीरे-धीरे सैन्य और राजनीतिक ताकत हासिल कर ली। प्लासी और बक्सर की लड़ाइयों के बाद, उन्होंने भारतीय राज्यों को अपने नियंत्रण में लेने के लिए विभिन्न नीतियाँ और रणनीतियाँ अपनाईं। ‘डिवाइड एंड रूल’ की नीति, संधियों, और हड़प नीति का उपयोग करके अंग्रेजों ने भारतीय शासकों की शक्ति को कमजोर किया और अपना शासन स्थापित किया।
निष्कर्ष\
कक्षा 8 के इतिहास के इस अध्याय से हमें यह समझने का मौका मिलता है कि अंग्रेजों ने किस प्रकार से भारतीय उपमहाद्वीप में अपने शासन की स्थापना की। यह अध्याय केवल भारत के इतिहास का एक महत्वपूर्ण हिस्सा ही नहीं है, बल्कि यह हमें यह सिखाता है कि किस प्रकार एक व्यापारी कंपनी ने एक बड़े और विविध देश पर शासन किया। अंग्रेजों की नीतियाँ और रणनीतियाँ आज भी अध्ययन का विषय बनी हुई हैं और यह अध्याय हमें इस प्रक्रिया के विभिन्न पहलुओं को समझने में मदद करता है।
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आध्याय | अध्याय का नाम |
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1. | संसाधन |
1A. | भूमि, मृदा एवं जल संसाधन |
1B. | वन एवं वन्य प्राणी संसाधन |
1C. | खनिज संसाधन |
1D. | ऊर्जा संसाधन |
2. | भारतीय कृषि |
3 | उद्योग |
3A | लौह-इस्पात उद्योग |
3B | वस्त्र उद्योग |
3C. | सूचना प्रौद्योगिकी उद्योग |
4. | परिवहन |
5. | मानव संसाधन |
6. | एशिया (no Available notes) |
7 | भौगोलिक आँकड़ों का प्रस्तुतिकरण (no Available notes) |
अतीत से वर्तमान भाग 3 –कक्ष 8 सामाजिक विज्ञान – |
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सामाजिक आर्थिक एवं राजनीतिक जीवन भाग 3 |
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अध्याय | अध्याय का नाम |
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1. | भारतीय संविधान |
2. | धर्मनिरपेक्षता और मौलिक अधिकार |
3. | संसदीय सरकार (लोग व उनके प्रतिनिधि) |
4. | कानून की समझ |
5. | न्यायपालिका |
6. | न्यायिक प्रक्रिया |
7. | सहकारिता |
8. | खाद्य सुरक्षा |